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रविवार, 20 मई 2012

अन्नू भाई चला चकराता ...पम्म...पम्म...पम्म (भाग- २ )

आखिरकार कुछ देर उठाक पटक के बाद हमने अपनी गाडी वापिस छुटमलपुर की और दौड़ा दी! सी बी आई की तरह पूछताछ कर, छुटमलपुर से पहले ही हमने एक अनजान सा रास्ता(जस्मोर- बिहारीगढ़ ) पकड़ लिया, जो कहीं आगे जाकर मिर्ज़ापुर पर निकलता था! मिर्ज़ापुर सहारनपुर से विकासनगर वाले हाईवे पर था!हमारी देखा देखी एक दो गाड़ियां और हमारे पीछे लग गयी! निहायत ही देसी और ग्रामीण इलाको से होते हुए हम मिर्ज़ापुर पहुंचे ! 

यहाँ से हरबेर्टपुर होते हुए विकास नगर लगभग 35-36 कि.मी. है!  रास्ता लगभग साफ़ सुथरा है! हरबेर्टपुर नॅशनल हाईवे न. 7 पर स्थित है! जो देहरादून से पोंटा साहिब (हिमाचल ) को जाता है ! और यहाँ से 5 कि. मी. आगे विकासनगर है! जो के एक अच्छा बडा टाउन है! खाने पीने के लिए वेज और नॉन वेज ढाबे , पेट्रोल पम्प  और ऐ टी म आदि की सभी सुविधाए यहाँ उपलब्ध है ! यही से 3 कि. मी. बाएं जाने पर प्रसिद्ध डाक पत्थर है जो यमुना नदी पर बने अपने ह्यडरो प्रोजेक्ट और आसन बैराज पक्षी विहार के लिए जाना जाता है , परिवार के लिए एक बहुत ही सुंदर एवं सुरक्षित पर्यटन स्थल है ! विकासनगर  पहुँचते- पहुँचते हमे लगभग 8 बज चुके थे! आखिर मन में थोडा चैन पड़ा, के चलो कहीं सही सी जगह तो पहुंचे! 

चमचमाता प्रकाश वैष्णव भोजनालय एवं लोज   



हम थोडा थके और भूखे थे! साथ साथ हमारी गाडी भी बेचारी सुबह से हमे ढोकर थक चुकी थी और भूखी भी थी! यानी उसे भी तो पेट्रोल चाहिये था! वैसे भी आगे एक दम पहाड़ी सफ़र जो करना था और  हमे पता नही था के आगे पेट्रोल पम्प कब और कहाँ मिलेगा! गाडी साइड लगा कर इधर उधर जांच पड़ताल चालू की !  ढाबे तो कई दिखाई दिए परन्तु हम ठहरे पक्के शाकाहारी और हमारे कीड़े भाई पक्के जैनी.....तो  पता चला की आगे मेन रोड पर ही जो चकराता जाता है, वहां का एक प्रसिद्ध प्रकाश वैष्णव भोजनालय स्थित है! हम आगे के सफ़र के लिए बाकी का खाने पीने का सामान खरीद, प्रकाश वैष्णव भोजनालय जा पहुंचे ! जो एक दम साफ़ सुथरा माहोल लिए जैसे हमारे ही इंतज़ार में था! यहाँ पर ऊपर ठहरने की उचित व्यवस्था भी मौजूद थी! प्रकाश वैष्णव भोजनालय एवं लोज के मालिक एक बुजर्ग लेकिन बहुत ही सोम्य और धार्मिक विचारो के व्यति थे! जो की भोजनालय में लगी भगवानो की विभिन्न तस्वीरो को देखकर पता चलता है! चलो जी खैर उस प्रभु की कृपा से हमे बड़ा ही स्वादिष्ट और गरमा गरम खाना खाने को मिला! वाकई में सिर्फ लिखने के लिए नहीं कह रहा अपितु खाना था ही बहुत शानदार और हमे खाना खिलाने वाले उस गढ़वाली लड़के की सर्विस भी! दाम की एक दम वाजिद थे! 
साफ़ सुथरा पारिवारिक माहोल 

ये  बेचारा भूख का मारा , हमारे  कीड़े  भाई साहब 

नप्किन और पानी नहीं खाना लाओ बस जल्दी ! मैं और प्रवीण 
रात के लगभग 9 बज चुके थे और हम खाना खाकर एक प्याली चाय के इंतज़ार में वहीँ टेबल को संसंद में बदल चुके थे! संसद से मेरा मतलब फिर वही बहस चालू हो गयी थी के अब क्या किया जाए ! आगे चकराता चला जाए या नहीं ? क्यूंकि एक तो आगे आर्मी एरिया होने की वजह से रास्ते में गेट सिस्टम रहता था सो वो रात में आगे जाने नहीं देंगे, दूसरा रास्ता पता नहीं कैसा होगा ?  फिर सोचा यही प्रकाश लोज में रुका जाए या फिर 3 कि.मी. जाकर डाक पत्थर में रात बिता कर वही पत्थर तोड़े जाए .........और सुबह सवेरे चकराता निकला जाए! इसी शोर शराबे में हमे उन बुजुर्गवार से पता चला के अब गेट सिस्टम ख़तम हो गया है और इतनी रात में भी आगे जाने में कोई दिक्कत नहीं! हमने भी चाय ख़तम करी और पैसे देकर उन साहब का ढेरो शुक्रिया अदा कर अपनी गाडी की और चल पड़े! क्या सज्जन व्यक्ति था ...चाहता तो हमें गलत बता कर अपनी लोज में ठहरने के लिए उकसा सकता था लेकिन नहीं .......यहीं तो पता चलता के ये कहीं न कहीं लोग अभी भी पूरी तरह भारतीय है ....आजकल के इंडियन नहीं बने!  

गढ़वाली लड़का और सज्जन बुजुर्गवार लोज के मालिक 
लड़ते झगड़ते आखिर घुमक्कड़ी जीत गयी और हमने आगे चकराता बढ़ते हुए गाडी पेट्रोल पम्प की और दौड़ा दी! यहाँ से चकराता, कलसी होते हुए 52-53 कि.मी. है! कलसी अपनी प्राकृतिक सोंदर्य और वहां स्थित सम्राट अशोक द्वारा स्थापित करायी गयी शिलालेख के लिए जाना जाता है! रात होने की वजह से अब शिलालेख तो देखना मुश्किल था! जैसे जैसे अनुज गाडी को वहां पहाड़ियों की गोद में ऊपर की और बढाए जा रहा था! वैसे वैसे ही ना जाने कौन सी सुखद एवं अनजानी ख़ुशी का एहसास भी हमारे मन में बढ़ता जा रहा था! रात के अँधेरे में ना तो कोई खाई दिखाई दे रही थी बस कार से पड़ने वाली रौशनी में पहाड़ी घूम और पेड़ पोधे दिखाई दे जाते थे! लगता था के मानो हमसे पुछ रहे के भाई साहब इतनी रात में कहाँ?  बाते करते करते हमे एहसास हुआ के आसमान के चमचमाते लाखो तारे और सुनसान सी पहाड़ी सडक जैसे हमे कुछ कह रही है! हमने भी उनसे दो चार बाते करने की सोच घोर अँधेरे में गाडी साइड में लगा, सब लाइट ऑफ कर दी! गाडी से बहार निकल शरीर की अकडाहट  कम करने लगे!  क्या शांति थी उस सर्द रात में, च्यूंटी काटती बर्फीली हवाएं , जंगल के जिन्गुरो की आवाज़ ............आहह्ह्ह्हहह्ह्ह्ह का सा एहसास निकला हमारे मन से! 

 गाडी की रौशनी से लुका छिपी खेलते पहाड़ी रस्ते के घूम 

पहाड़ो की ख़ामोशी और तारों से बाते करते  हम 
फिर कुछ देर उन टीमटीमाते तारों को देखने के बाद हमे लगा के वहाँ चकराता में कोई हमारा इंतज़ार नहीं कर रह होगो वो भी सर्दी भरी रात में के बाउजी आयेंगे और कमरा तैयार .....जल्दी जल्दी चकराता पहुचने के प्रयास में हम उस एक दम पहाड़ी रास्ते से फिर उलझ पड़े! आखिर 11:40 पर हम अपनी मंजिल का प्रथम दर्शन कर रहे थे जो के एक तिराहा सा था!  एक दम सुनसान , न कोई आदमी,  न कोई सुचना बोर्ड,   किधर जाए...........?लगा भैया फिर फंस गए,

चकराता एक टिपिकल आर्मी  एरिया है! यहाँ विदेशी सैलानीओं  का आना मना है! खैर जी एक फोजी जो की न तो हिंदी ही जानता था न इंग्लिश, लेकिन उसे इतनी ठण्ड में ड्यूटी पर तैनात देखकर हमें ये पता चल गया था के ये देशभग्ति जरुर जानता है! हमने भी उसकी देशभग्ति को सलाम कर! एक प्रसिद्ध होटल स्नो विऊ के बारे में पूछा, लेकिन वो कुछ न बता कर एक साइड में हाथ से इशारा कर बस एक शब्द बोला होत्लू ...होत्लू ...

फोजी भाई को धन्यवाद कर हमने भी अपनी गाडी उसी और चढ़ा दी ! थोडा आगे जाकर और चढाई चढ़ घूमते ही सामने कुछ गाडिया पार्क थी और एक गेट लगा था ! गाडी खड़ी कर हम बहार निकले तो पता चला के ठण्ड ने भी पूरा जोर लगा रखा था उस सन्नाटे को बढाने में! तभी हमारी गाड़ी की आवाज़ सुन गेट के बगल में ही एक टिकटघर नुमा कमरे से एक छोटे से कद का (हिंदी फिल्मो का राजपाल यादव टाइप ) एक पहाड़ी आदमी निकला, देखते ही लगा के यही तो टिपिकल जौनसारी है, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ के उत्तराखंड में मुख्यत: तीन इलाके और लोग पाए जाते है एक है गढ़वाल के गढ़वाली,  दुसरे कुमाउ के कुमाँउनी, और तीसरे जौनसार के जौनसारी! सो चकराता उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र में पड़ता है! वह जौनसारी व्यक्ति हमसे बोला के यहाँ यही एक मुख्य बाज़ार है और यह उसी का गेट है जो की रात के समय बंद रहता है! गाडी आगे लेजाने के लिए मुनिसिपल कमेटी की पर्ची कटवानी होगी! वही अन्दर आपको कोई लोज मिल जायेगी! लेकिन हम भी होटल स्नो वीऊ के लिए अड़े थे! और वो  भाई अपनी पर्ची पर.... कुछ न बताकर हमारी पर्ची काटने में लगा था! हमने भी उसे अभी लोटकर आने की बोल वापिस गाडी दौड़ा दी!

होटल स्नो वीऊ की तलाश में! उसका कारण यह था की यह होटल अपने आप में एक देखने और रहने के जगह है! हमने सुना था के वो अंग्रेजो ने 1836 में बनवाया था जो की सुर्योदय की खूबसूरती निहारने के लिए उत्तराखंड की बेहतरीन जगहों में से एक था! आधा घंटा भटकने के बाद आखिर हम होटल स्नो वीऊ पहुचे! जो की उसी सबसे पहले तिराहे से सीधे आगे जाकर थोडा दाहिने हाथ पर एक निचे उतरते बहुत ही संकरे से रास्ते पर था! जो सिर्फ उसी पर जाकर ख़तम होता था! वह सचमुच ही एक पुरानी सी ब्रितानी बिल्डिंग थी! जो कभी किसी जमाने में रहिसियत ही गवाह रही होगी! अँधेरे में आवाज़ सुन कर दो पहाड़ी लड़के बहार आये, पूछने पर बड़े अकड़े से लहजे में बोले, कमरा तो खाली है लेकिन किराया 1200 रुपये होगा तीनो का! हमने कहा भाई, वेब साईट पर तो तुमने डबल बेड का किराया 800 रुपये लिखा है! तो वो बोला ये सुइट है और बाकी सब कमरे लगे है कोई खाली नहीं! हमने कहा  एक बार दिखा तो दो कैसा है! देखा तो कमरा क्या पूरा का पूरा 2 बी एच के फ्लैट था! पहले एक कमरा जिसमे डबल बेड और एक कोने में चिमनी थी! दूसरा भी वैसा ही पर उससे भी बड़ा, एक कोने में स्टोर रूम जो की बंद पड़ा था और दूसरी कोने में सबसे बाद में एक बाथरूम  था जिसका एक दरवाज़ा होटल में पिछवाड़े में खुलता था! पिछवाड़े की हालत देखकर वहां फैले कूड़े कबाड़े को देखकर बडा  दुःख हुआ के हम जैसे ही लोग आकर इस प्रकृति और पर्यावरण का अनदेखा कर जाते है!
पहला कमरे  में  जांच पड़ताल करता प्रवीण 

दुसरे कमरे में आराम फरमाता मैं साथ में हमारे जूते भी थक गए थे 

बाथरूम और स्टोर रूम की पहरेदारी करता अन्नू  भाई

ठण्ड  दूर करने का अंग्रेजी तरीका 

हाल जैसे कमरे की  छत भी अजीब ही थी 
खैर जी हमने उस से कुछ रियायत करने को कहा, के भाई हम इतने बड़े कमरे का क्या करेंगे? हम तो एक रूम में ही सेटेल हो जायेंगे और सुबह जल्दी निकलेंगे, सो कुछ तो कम करो! उसने ना, एक रुपैया भी कम किया! जानता था इतनी रात और ठण्ड में कहाँ जायेंगे! लेकिन तभी हमारी कीड़े भाई साहब बोल पड़े अगर नहीं कम करता तो रहने दो कहीं और चलते है! और इतना कह हम तीनो वापिस अपनी गाडी की और चल दिए! गाडी पर पहुच कर देखा के उन लडको ने भी दरवज्जा बंद  कर लिया! मैंने और प्रवीण  ने कहा यार अन्नू  इतनी रात में अब और कहाँ जायेंगे? तो अनुज बोला यार मैंने तो ऐसे ही हूल देने को कह दिया था! के जब हम वापिस जाने लगेंगे, तब तो कुछ कम कर ही लेगा! लेकिन यहाँ तो पासा उल्टा ही पड गया था! अब रात के सवा बारह बज चुके थे और सुनसान अनजान चकराता की सर्द हवा हमे उस बंद दरवज्जे की और जाने को कह रही थी! सो हमने उसकी बात मान वापिस दरवाजे पर द्स्तक दे, अपने हथियार डाल दिए!

चाय पीने की बड़ी तलब लगी थी! लेकिन उन पट्ठो ने भी एक जग पानी का देकर हाथ झाड दिए! चलो जी, पानी पिकर ही सही हम तीनो एक ही बिस्तर पर लमलेट हो लिए! आखिर हम चकराता के सबसे बेहतरीन होटल के सुइट में आराम जो फरमा रहे थे! यही सोच कर के सुबह जल्दी उठकर हम भी अंग्रेजो के बनाये इस होटल से कल के खुबसूरत सूर्योदय का मजा आज छुट गयी चाय की चुस्की के साथ कल तो लेंगे ही! और लाइट बंद कर पता नहीं कब  इसी इंतज़ार आँख लग गयी!   आगे क्या क्या  हुआ? चाय मिली या नहीं? सूर्योदय देखा या नहीं? ये सब भी जल्द ही बताऊंगा अपनी अगली पोस्ट में जाईयेगा नहीं .......











7 टिप्‍पणियां:

  1. पोस्ट अच्छी लगी, रात के समय इतना रिस्क मत लो मेरे भाई. कीड़े भाई साहब तो कुछ ज्यादा ही सुस्त लग रहे हैं. भूख ज्यादा ही लग रही हैं शायद, अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा.

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    1. प्रवीण जी पोस्ट की तारीफ़ के लिए शुक्रिया, दिन भर की यात्रा के बाद थकान और भूख तो लगनी ही थी, अगली पोस्ट जल्दी ही लिखूंगा , धन्यवाद

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  2. बढिया यात्रा चल रही है हम भी साथ हैं ध्यान रहें :)

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    1. अरे शर्मा जी कैसे बाते कर दी आप सबको कैसे भूल सकता हूँ! आपकी टिप्पिनियों के सहयोग से ही तो ये ब्लॉग यात्रा चल रही है!

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  3. भाऊ क्या हुआ? मई के मामला ठप्प क्यों है?

    सबसे पहले यू word verification हटाना ठीक रहेगा। इसके कारण कमेन्ट करने वालों को परॆशानी आती है।

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    1. जाट देवता जी शुक्रिया.....मामला बस कुछ समय की बध्यत्ता और ब्लोगिंग में नया नया होने की वजह से ऐसे ही ठप्प हो गया .....परन्तु ख़तम नहीं हुआ है जब तक आप जैसे प्रेरणादायक लोग मेरा उत्साह वर्धन करेंगे .....तो जल्दी ही आगे भी जारी रहेगा .....वर्ड वेरिफिकेशन मुझे इसके बारे में पता नहीं था सो आज कोशिश करके इसे हटा देता हूँ.

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