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शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

सौ साल पुराना.....छुपा खजाना ... गंगऊ बाँध और रंगवान बाँध (RANGUWAN DAM & GANGAU DAM) PART-2


पिछले भाग में  आपने पढ़ा के कैसे हम खजुराहो से रँगवान  बाँध पहुंचे और वहां की झील का नज़ारा ले आगे पन्ना टाइगर रिज़र्व में गंगऊ बाँध की और बढ़ चले। .. 
पिछल भाग का लिंक http://ghoomakkar.blogspot.in/2016/02/ranguwan-dam-gangau-dam-part-1.html

थोड़ा आगे पहुचने पर फारेस्ट वालो का गेट आया वहां पर गाडी के लिए कुछ एंट्री शुल्क था याद नहीं कितना दिया था सुना है आजकल ४५०/- रुपये लेते हैं 

आगे बढ़ने पर बहुत थोड़ी से चढ़ाई  और एक दो घुमाव के बाद हमारे सामने एक विशाल लैंडस्केप था  जिसमे बाएं हाथ पर सुनसान ,अकेला और बूढ़ा हो चला  गंगऊ  डैम  हमें  बाहे फैलाये  बुलाये चला जा रहा था।  मानो बहुत सालो के बाद किसी बड़े बुजर्ग को उसके छोटे छोटे बच्चे मिल गए हों ! हम भी बोलेरो से उत्तर ऐसे भी बिना लॉक लगाये उस बुजुर्ग और विशाल दूर तक फैले डैम की और बढ़ चले।  वहां कोन था जो गाडी छेड़ता ! 
डैम के बनाने वालो को मेरा सलाम 

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

सौ साल पुराना.....छुपा खजाना ... गंगऊ बाँध और रंगवान बाँध (RANGUWAN DAM & GANGAU DAM) PART-1

आज कल हम घुमक्कड़ो के वाट्सअप ग्रुप में  सुशील जी के शुरू करे घुमक्क्डी के छुपा खजाने की चर्चा बड़े जोर पर चल रही है इसी दौरान एक दिन चर्चा की जिम्मेवारी मुझे भी सौंपी गयी और उसी में मुझे इस जगह की याद आई सो मैंने भी अपनी हार्ड डिस्क टटोली और लगा देखने पुरानी फोटो को बस फिर क्या था समय मानो उल्टा दौड़ने लगा और हर फोटो के साथ बिता पल और यादें एक दम ताज़ा होती चली गयी। लगा जैसे आज कल की बात हो ! 

चलिए खैर, अब चलते है अपने छुपे खजाने को खोजने। 

विश्व पर्यटन स्थल खजुराहो और पन्ना टाइगर रिज़र्व का नाम तो यहाँ सब ने सुना ही होगा और और बहुतो ने तो देखा ही होगा   क्यूँ ???

लेकिन उन्ही विस्व प्रसिद्द स्थल के बीच में दोनों और से लगभग ४५-५० किलोमीटर दूर एक बहुत ही अध्भुत, विशाल, और सौ साल से भी पुराना एक डैम है शायद यहाँ हमारे मध्यप्रदेश और बुंदेलखंड वाले  मित्र जानते होंगे

अपने एक मित्र के साथ खजुराहो घूमने के प्रोगाम बनाने के दौरान मुझे उस डैम के बारे में पता चला मुझे अब खुद भी याद नहीं के कहाँ से मुझे उस डैम के बारे में पता चला था लेकिन देखने की इच्छा बहुत थी।  
सो खजुराहो से सतना लौटते हुए मैंने अपने बोलेरो के ड्राइवर से कहाँ .... भाई , यहाँ आस पास एक बहुत पुराना डैम है वहां भी जाना है।  लेकिन वो भाई बोला ,  जी मुझे तो ऐसा कुछ मालुम नहीं , हाँ पन्ना में मेरा एक रिश्तेदार मित्र है उसे ले लेते है वो शायद कुछ  बता सके। 

चलिए उन महाशय को भी ले लिया।  लेकिन ड्राइवर भाई और उसका वो साथी वहां के लोकल होने के बावजूद भी उसके बारेमे कुछ न जानते थे .. लेकिन ऐसी स्थिति में ही है जो घुमक्क्डी कीड़ा मानता नहीं, और उस कीड़े को पता होता है कैसे पहुचना होताहै सो वोआप सब जानते ही है और हम भी उसी कीड़े के काटने की कारण पूछते पाछते बढ़ चले। 

 खैर जी राष्ट्रीय राजमार्ग ७५ ( रीवा से ग्वालियर ) पर खजुराहो से पन्ना की और बीच में कहीं बमीठा से आगे सीधे हाथ पर आप जब ये बोर्ड देखोगे तो एक बार तो चकित हो ही जाओगे  यहाँ आज भी दूरी मीलों में लिखी मिलेगी एक बार जरा निचे फोटो में ये बोर्ड देखिये और बताइये आपने ये दोनों नाम सुने है या ये जगह देखी  है कभी ?

आज  भी दूरी मील में लिखी है 

गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

अन्नू भाई चला चकराता …पम्म…पम्म…पम्म (भाग- 5 ) लाखामंडल (LAKHAMANDAL)

आशा है पिछली पोस्ट में आप लोगो को भी 312 ft. ऊपर से गिरते टाइगर फाल को देखकर और उसके बारे में पढ़कर थोडा बहुत मजा तो आया होगा।
हमारे इंतज़ार में अन्नू भाई और प्रवीण बाबू 

टाइगर फाल जाने का स्टार्टिंग पॉइंट 


दनदनाता टाइगर फाल 

गुरुवार, 21 मार्च 2013

अन्नू भाई चला चकराता …पम्म…पम्म…पम्म (भाग- 4 ) टाइगर फाल (TIGER FALL)

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा था के कैसे हम बुधेर के बुग्याल  और मोइल गुफा का मजा लूट , वापिस  बुधेर फारेस्ट रेस्ट हाउस पहुँच, एक अजीब सी उलझन में फंस गए थे  यही की अपने अन्नू भाई की राफ्टिंग की ख्वाहिश  .........
ये लो …अब इसे क्या हुआ इतने जंगल में अब राफ्टिंग कहाँ से करें। कहाँ ऋषिकेश कहाँ हम चकराता के जंगलो में …क्या प्रोग्राम था कानासर , देवबन , टाइगर  फाल ???? अब उसका क्या …
बुधेर के बुग्याल के छोटे से हिस्से में छोटा सा अनुज 

रविवार, 10 मार्च 2013

अन्नू भाई चला चकराता ...पम्म...पम्म...पम्म (भाग- 3 ) रहस्यमई मोइला गुफा


पिछली पोस्ट में आप ने पढ़ा के दिनभर की जद्दोजहद और यात्रा का आनंद उठाते हुए आखिरकार हम अपने गंतव्य स्थान चकराता और उस पर भी अपने पसंदीदा एतिहासिक होटल स्नो व्यू के कमरे में पहुँच सपनो के दुनिया में खो चुके थे ! आगे …

 रात में मेरी आँख एक दो बार डर कर खुल गयी ...अरे अरे आप लोग घबराओ मत .......क्यूंकि  डर किसी भूत या चुड़ैल हा न होकर इस बात का था की कहीं हम सोते सोते रह जाए और एक खुबसूरत सूर्योदय देखना, कल रात जैसी चाय न हो जाए ......
खैर जी मैं अपनी आदत से मजबूर .....यही की पहाड़ो में सुबह जल्दी उठो और बस निकल पड़ो, प्रकृति की खूबसूरती का मजा लेने! सो आज भी मैं सबसे पहले उठ, अनुज और प्रवीण को बाहर का नजारा लेने के लिए उठाने लगा ! लेकिन कई बार हिलाने और बुलाने पर जब प्रवीण बाबू नहीं उठे तो मैं और अनुज चल पड़े अपनी पहाड़ी सुबह का मजा लूटने !

नींद की खुमारी ....सब पर भारी  (प्रवीण बाबू)

 बाहर आते ही हमारे मुह से निकला .....वाआओ .... क्या सीन है यार .... दूर पहाड़ो के पीछे धरती पर पड़ती सूरज की पहली किरण जैसे कह रही हो, देखा हूँ न मैं बहुत सुंदर ...... थोड़ी देर हम कोतुहल से भरे उस रंग बदलते  पहाडो  और आसमान को देखते रहे ....फिर हमे याद आया की हमारे कैमरे भी इन्ही लम्हों के इंतज़ार में तो थे ...

चकराता की खुबसूरत सुबह ....और उसे कभी निहारंता और कभी कैमरे में सजोंता ...मैं 

रविवार, 20 मई 2012

अन्नू भाई चला चकराता ...पम्म...पम्म...पम्म (भाग- २ )

आखिरकार कुछ देर उठाक पटक के बाद हमने अपनी गाडी वापिस छुटमलपुर की और दौड़ा दी! सी बी आई की तरह पूछताछ कर, छुटमलपुर से पहले ही हमने एक अनजान सा रास्ता(जस्मोर- बिहारीगढ़ ) पकड़ लिया, जो कहीं आगे जाकर मिर्ज़ापुर पर निकलता था! मिर्ज़ापुर सहारनपुर से विकासनगर वाले हाईवे पर था!हमारी देखा देखी एक दो गाड़ियां और हमारे पीछे लग गयी! निहायत ही देसी और ग्रामीण इलाको से होते हुए हम मिर्ज़ापुर पहुंचे ! 

यहाँ से हरबेर्टपुर होते हुए विकास नगर लगभग 35-36 कि.मी. है!  रास्ता लगभग साफ़ सुथरा है! हरबेर्टपुर नॅशनल हाईवे न. 7 पर स्थित है! जो देहरादून से पोंटा साहिब (हिमाचल ) को जाता है ! और यहाँ से 5 कि. मी. आगे विकासनगर है! जो के एक अच्छा बडा टाउन है! खाने पीने के लिए वेज और नॉन वेज ढाबे , पेट्रोल पम्प  और ऐ टी म आदि की सभी सुविधाए यहाँ उपलब्ध है ! यही से 3 कि. मी. बाएं जाने पर प्रसिद्ध डाक पत्थर है जो यमुना नदी पर बने अपने ह्यडरो प्रोजेक्ट और आसन बैराज पक्षी विहार के लिए जाना जाता है , परिवार के लिए एक बहुत ही सुंदर एवं सुरक्षित पर्यटन स्थल है ! विकासनगर  पहुँचते- पहुँचते हमे लगभग 8 बज चुके थे! आखिर मन में थोडा चैन पड़ा, के चलो कहीं सही सी जगह तो पहुंचे! 

चमचमाता प्रकाश वैष्णव भोजनालय एवं लोज   

गुरुवार, 3 मई 2012

अन्नू भाई चला चकराता ...पम्म...पम्म...पम्म (भाग- 1)

आज अपना पहला यात्रा अनुभव आप लोगे से साझा करने जा रहा हूँ हिंदी लिखे हुए वैसे भी अरसा हो गया! इस ब्लॉग को शुरू करने से पहले याद भी नहीं पड़ता की अंतिम बार कब हिंदी में लिखा होगा! नौकरी के झमेले और आज कल की जिंदगी हो ही ऐसी गयी है....चलिए खैर मेरे हिंदी लेखन में होने वाली गलतियों/त्रुटियों पर आप सब से पहली और अंतिम बार क्षमा माग लेता हूँ ....आशा है आप सब मेरा उत्साहवर्धन कर त्रुटियों पर ध्यान न दे यात्रा अनुभवों का मजा लेंगे!!
 2011 दिवाली से कुछ दिन पहले मेरे खासम ख़ास दोस्त अनुज उर्फ़ अन्नू का फोन आया जॉब के कारण वो आज कल बंगलौर में रहता है ! अन्नू को हम यार दोस्त कीड़ा भी कहते है आप लोग समझ ही गए होंगे के कीड़ा मतलब....बोला भाई इस बार दिवाली की छुट्टियों में घर आऊंगा तो कही घुमने चलेंगे! हमारी घुमक्कड़ी की वजह से हम वैसे ही बदनाम रहते है सो उसे भी मैं ही याद आया , बोला प्रोग्राम ऐसा हो के बस हमेशा याद रहे, एक दम एडवेंचर से भरपूर! चलो खैर काफी कुछ दिन विचार विमर्श के बाद आखिर हमारे कहे अनुसार प्रोग्राम बना मेरे सबसे पसंदीदा प्रदेश उत्तराखंड में चकराता और लाखामंडल का, साथ में हमारे एक छोटे भाई साहब(मौसेरे भाई ) प्रवीण भी तैयार हो लिए, इन दिनों उनकी भी घुमक्कड़ अन्तरात्मा जागने लगी थी! समय की बाध्यता  को देखते हुए दो रातें और दिन दिन का प्रोग्राम बना , क्यूंकि भाई साहब की बंगलौर वापसी तय थी और हमारी भी ऑफिस की मज़बूरी ......सो सोचा भैया दूज वाले दिन तडके तड़क निकल शाम 3-4 बजे तक चकराता पहुचेगे बाकी बाद में देखेंगे .....
हमारे कीड़े भाई साहब अनुज जैन जी 




घुमक्कड़ी के नए सूरमा  प्रवीण कोशिक जी